अतिशयोक्ति

गर कह जो मैं दूँ
कहीं चले जाओगे तो नहीं?
बूंद जो मैं बन जाऊं
समा लोगे तो नहीं?
है  बात बस कहने की
या है कुछ हस्तीै मेरी भी?
हम है बस जब तक चुप है कोई
कुछ वजूद हमारा है भी या नही?


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